ये कैसा प्रेम है तुम्हारा..
कैसा प्रेम है तुम्हारा, ना कहीं देखा, ना सुना जरूर तुम किसी और लोक से आये हो वरना ऐसा कैसे कर जाते हो तुम.!
ये कैसा प्रेम है तुम्हारा
कभी अपनी कोई परवाह ही नही होती है बस मेरी फिक्र में ही रात दिन गुजार देते हो
मुझे काँटा भी चुभ जाये तो हद से गुजर जाते हो तुम.!
ये कैसा प्यार है तुम्हारा...
ना कोई फरमाइशें,ना कोई नखरे, ना कोई गिले -शिकवे,केवल प्रेम ही प्रेम.! मेरी हर खुशी पर बेपनाह लुट जाते हो...
ये कैसा प्रेम है तुम्हारा
कभी अपनी कोई परवाह ही नही होती है बस मेरी फिक्र में ही रात दिन गुजार देते हो
मुझे काँटा भी चुभ जाये तो हद से गुजर जाते हो तुम.!
ये कैसा प्यार है तुम्हारा...
ना कोई फरमाइशें,ना कोई नखरे, ना कोई गिले -शिकवे,केवल प्रेम ही प्रेम.! मेरी हर खुशी पर बेपनाह लुट जाते हो...