अगर कहूँ… तो?
अगर कहूँ, तुम मेरे ख्वाब हो,
तो क्या हर सुबह मेरा सच बनोगे?
जो ठहर जाऊं मैं किसी मोड़ पर,
तो क्या मंज़िल बनके मुझे पा लोगे?
अगर बिखर जाऊं दर्द की धूप में,
तो तुम छाँव बनके समा जाओगे ना?
जो आँसू छलक जाए आँखों से,
तो तुम हँसी...
तो क्या हर सुबह मेरा सच बनोगे?
जो ठहर जाऊं मैं किसी मोड़ पर,
तो क्या मंज़िल बनके मुझे पा लोगे?
अगर बिखर जाऊं दर्द की धूप में,
तो तुम छाँव बनके समा जाओगे ना?
जो आँसू छलक जाए आँखों से,
तो तुम हँसी...