...

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डूबती आंखें
आज आंख बंद करके सोना चाहती हूं,
दिल खोल के रोना चाहती हूं,
पता नहीं किस्मत के पन्नों को क्या रास आया कभी हंसाया कभी रुलाया ।
दिल के दर्द को कोई समझ ना पाया ,
या मैं समझा ना पाया ।
दूर बैठा सूरज मुझ पर हंसता है,
क्या डूबने के बाद भी कोई नमस्कार करता है।
पर मैं बोली ,तुम सूरज हो इसीलिए नमस्कार किया ,
मुझे ना पता था तुमने हंसकर मेरा तिरस्कार किया ।
अगर तुम सूरज बन जाओ,
तो तिरस्कार भी मुझे मंजूर है ।
दुनिया के आगे ऊंचे हो तो ,
तो ये हार भी मुझे मंजूर है ।
झुकते हुए दुनिया में से मैं चली जाऊंगी
तुम्हें सूरज की तरह टिमटिमाते छोड़ जाऊंगी
अब जब डूबोगे याद मेरी आएगी ,
हंसी से नहीं, अब शौकसे आंखें भर पाएगी
सोचोगे डूबता था जब मैं कोई याद मुझे करता था
सर झुका के नमस्कार मुझे करता था
मैं हंसता था अपने डूबने पर, उसने मुझे उगना सिखा दिया
डूब कर भी हंसना बता दिया
कैसे भूल पाऊंगा उसकी याद को
जो झुकती थी मेरे प्यार में,
मैं हंसता था तिरस्कार में।