कभी कभी
कभी कभी खुद से पूछती हूँ मै,
क्या सच मे किसी के लिए खास हूँ मै,
कोई तो ख्याल मेरे लिए भी कोई करें,
दिल करता है ये सवाल कोई तो करे,
क्या सिर्फ मै देह थी क्या देह ही रह जाऊँगी,
या फिर प्रेम के सिर्फ शून्य को मै पाऊँगी,
सवाल खुद से करती हूँ, जवाब मगर मिलता नही
मौन सा रहता जैसे वृष पत्ता कोई हिलता नही,
चुप हो जाती हूँ मगर भीतर कोतहल सा है,
जैसे मन के खेत को रोंदता कोई हल सा है,
© Rashmi Garg
क्या सच मे किसी के लिए खास हूँ मै,
कोई तो ख्याल मेरे लिए भी कोई करें,
दिल करता है ये सवाल कोई तो करे,
क्या सिर्फ मै देह थी क्या देह ही रह जाऊँगी,
या फिर प्रेम के सिर्फ शून्य को मै पाऊँगी,
सवाल खुद से करती हूँ, जवाब मगर मिलता नही
मौन सा रहता जैसे वृष पत्ता कोई हिलता नही,
चुप हो जाती हूँ मगर भीतर कोतहल सा है,
जैसे मन के खेत को रोंदता कोई हल सा है,
© Rashmi Garg