...

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तू बहती नदी है,बहती जा
तू उतरी प्रेम पहाड़ों से
आंचल के उजियारों से
चंचल चित्त तीखे धारे
जो देखे मन वो हारे
पहन पियरी,रूप सुनहरी
उजली सहर सी धूप दुपहरी
"छोड़ सखी घन"कहती जा
तू बहती नदी बस बहती जा

थिरक रही अब नए आंगन
भाए सिंदूर, चूड़ा, साजन...