...

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रिश्ते
हम तो इंसान पैदा हुए थे,
क्यूं फिर हिंदू-मुस्लिम धर्म में बंटने लगे|
स्कूल में तो हम सब दोस्त हुआ करते थे,
फिर क्यूं अब एक दूसरे से कटने लगे|
क्यूं अब ईद की खीर कड़वी लगने लगी,
क्यूं अब दिवाली की झिलमिलाहट,
और होली के रंगों से चुभन होने लगी,
मंदिर की घंटी की आवाज सुनकर..
अच्छा हुआ, घंटी की आवाज से नींद खुल गई,
वरना दिन निकल जाता....
अम्मी जान यह बुदबुदाते हुए उठती थी,
शाम की अजान सुनकर....
पांच बज गये.....चाय बनाती हूं,
मां यह कहते हुए उठती थी,
जाने अनजाने
मंदिर की घंटी और मस्जिद की अजान
एक दूसरे की मदद करने लगे,
फिर क्यूं सब एक दूसरे से कटने लगे|
याद है मुझे रीता....इमरान भाई जान से
ईद पर ईदी मांगती थी,
शहनाज....रक्षाबंधन पे
श्याम की कलाई पे राखी बांधती थी,
एक दूसरे के साथ हंसते खिलखिलाते थे,
फिर क्यूं अब एक दूसरे से कटने लगे|
पिताजी के स्टाफ के यामीन चाचा
गाय का दूध लेने हर रोज घर पर आते थे,
पिताजी भी ईद की खीर खाने
चाचा के घर जाते थे,
पर जाने क्यों इनके बच्चे
एक-दूसरे से नजरें चुराने लगे,
जाने क्यूं अब एक दूसरे से कटने लगे|
जाने क्यूं अब एक दूसरे से कटने लगे|