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कुछ अनकहा सा रहने दो..
मैंने अपनी ज़िन्दगी को कभी खुली किताब सा बनाया,
तो कभी अपनी ही कमजोरी से खुद को कमजोर किया।
क्यों न अब ख़ामोशी को अपना अंदाज़ बनाया जाये,
जो मैं आज हूँ वो आज से ही एक राज रखा जाये।
जुबां को जो समझें वो मेरे दिमाग़ तक ना पहुंच पाए
जो मेरे दिल से उतर गया हो वो फिर ना बसाया जाये।
© Niharik@ ki kalam se✍️
तो कभी अपनी ही कमजोरी से खुद को कमजोर किया।
क्यों न अब ख़ामोशी को अपना अंदाज़ बनाया जाये,
जो मैं आज हूँ वो आज से ही एक राज रखा जाये।
जुबां को जो समझें वो मेरे दिमाग़ तक ना पहुंच पाए
जो मेरे दिल से उतर गया हो वो फिर ना बसाया जाये।
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