...

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बेवफ़ा की फितरत
बुरा हो वक्त तो अपने सभी यूं छोड़ जाते हैं
नज़र यूं फेर लेते हैं कि दिल वो तोड़ जाते हैं

हमें थे चाहते दिल से वही अनजान बनते हैं
हमें अब देखते ही अपना रस्ता मोड़ जाते हैं

तमन्ना ख़ूब करते थे हमारे दिल में बसने की
नहीं अब वास्ता कोई मिलें तो दौड़ जाते है

सिला कैसे हमें मिलता बता अपनी वफाओं का
नहीं फितरत वफ़ा जिन की वो दिल झिंझोड़ जाते हैं

भरोसा ही नहीं जिनको वफ़ा क्या ख़ाक करते वो
निभाएं जो वफ़ा वो तो दिलों को जोड़ जाते हैं

ख़ुदा भी साथ देता है अगर "मासूम" हो दिलबर
करे चालाकियां कोई सभी फिर छोड़ जाते हैं

बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"