वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
छोटा था मैं उस वक्त.. मुझेसे चला नहीं जाता था,
कहने - बोलने की कोशिश करता.. लेकिन कहा नहीं जाता था,
डगमगाते कदमों को सहारा और मेरी अजीब आवाज को अर्थ दिया जिसने,
मेरे रुदन ओर मेरे चेहरे के भाव से जिसने मुझको भापा है...
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
अच्छा और अच्छाई का पता दिया जिसने,
क्या भला है.. क्या बुरा है.. बता दिया जिसने...
जिसने मेरी खातिर अपनी निंदो को कुर्बान किया,
ना दिन देखा.. ना रात देखी.. मेने बार बार परेशान किया...
मेरी एक ही मुस्कान से जिसका दिन बन जाता है,
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
वे उस वक्त भी जमाने को अच्छे से पहचानते थे,
हम गरीब है... यह सिर्फ वहीं जानते थे...
वे जब साथ रहते तो लगता सारा मेला अपना था,
जो मांगू सब कुछ मिल जाता.. जैसे सब कुछ सपना था...
मेरी खुशियों पर जो जान दे.. मुझे घंटो कंधे पर तान दे,
मेरे तुतलाते शब्दों और संकेतो को जो शख्स उस वक्त समझ पाता है,
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
जिसने सारे जहां की खुशियां दी,
हर कदम पर सहारा दिया...
जिनसे मेरी आंखो में अश्क आए,
उन्होंने उनसे किनारा किया...
जो टूट कर किसी तारे सा,
मुझे हर बार रोशनी दे जाता है
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
सुनते है सभी की, करते है मन की, किसी से हया नहीं करते...
वे आज भी मुझे उतना ही चाहते है,
लेकिन बयां नहीं करते...
मुझसे कुछ चाहते, कुछ ख्वाहिशें है उनकी,
जिसके लिए मेने उड़ान भरी...
लेकिन उन्हें यह भी डर है कि कुछ परिंदे घर लौट कर आया नहीं करते....
जिसके दम से मैं हूं, जिनके परों से यह परिंदा उड़ पाता है...
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
उनके होने से ही मेरी पहचान है,
मैं हूं एक परिंदा.. वे मेरा आशमं है,
मेरी हर एक ख्वाहिश को पूरा करते,
वे हमारे घर के भगवान है।
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#Samvedna #realityofsamvedna
© Satish Sonone
कहने - बोलने की कोशिश करता.. लेकिन कहा नहीं जाता था,
डगमगाते कदमों को सहारा और मेरी अजीब आवाज को अर्थ दिया जिसने,
मेरे रुदन ओर मेरे चेहरे के भाव से जिसने मुझको भापा है...
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
अच्छा और अच्छाई का पता दिया जिसने,
क्या भला है.. क्या बुरा है.. बता दिया जिसने...
जिसने मेरी खातिर अपनी निंदो को कुर्बान किया,
ना दिन देखा.. ना रात देखी.. मेने बार बार परेशान किया...
मेरी एक ही मुस्कान से जिसका दिन बन जाता है,
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
वे उस वक्त भी जमाने को अच्छे से पहचानते थे,
हम गरीब है... यह सिर्फ वहीं जानते थे...
वे जब साथ रहते तो लगता सारा मेला अपना था,
जो मांगू सब कुछ मिल जाता.. जैसे सब कुछ सपना था...
मेरी खुशियों पर जो जान दे.. मुझे घंटो कंधे पर तान दे,
मेरे तुतलाते शब्दों और संकेतो को जो शख्स उस वक्त समझ पाता है,
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
जिसने सारे जहां की खुशियां दी,
हर कदम पर सहारा दिया...
जिनसे मेरी आंखो में अश्क आए,
उन्होंने उनसे किनारा किया...
जो टूट कर किसी तारे सा,
मुझे हर बार रोशनी दे जाता है
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
सुनते है सभी की, करते है मन की, किसी से हया नहीं करते...
वे आज भी मुझे उतना ही चाहते है,
लेकिन बयां नहीं करते...
मुझसे कुछ चाहते, कुछ ख्वाहिशें है उनकी,
जिसके लिए मेने उड़ान भरी...
लेकिन उन्हें यह भी डर है कि कुछ परिंदे घर लौट कर आया नहीं करते....
जिसके दम से मैं हूं, जिनके परों से यह परिंदा उड़ पाता है...
वे कोई और नहीं, वह मेरे पापा है।
उनके होने से ही मेरी पहचान है,
मैं हूं एक परिंदा.. वे मेरा आशमं है,
मेरी हर एक ख्वाहिश को पूरा करते,
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© Satish Sonone