...

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टूटा पत्ता
टूटे पत्ते का समर्पण शख्स एक समझा गया,
एक बुजुर्ग था घर जिसका शूटा वो पेड़ के नीचे आ गया,
टूटे पत्तों ने था पूछा तुझको कैसा गम है,
क्यों कांपते हैं होंठ तेरे और आंख तेरी क्यों नम है,
बुजुर्ग बोला ए टूटे पत्तों क्या क्या सुनाऊ आपको,
मैंने तिनका तिनका टूट के पाला था जिस औलाद को,
उन्होंने सब कुछ मेरा छीन लिया और घर से निकाला इस बाप को,
पर ए पत्ते मेरी तरह तू भी तो टहनी से गिरा,
पर मड़क तेरी कायम हैऔर कायम है वही सिलसिला,
पत्ता बोला सुन ए बंदे,
यह मड़क नहीं गुमान है,
इस पेड़ की हर शाख से मुझ को मिली पहचान है,
इस छाल ने इस पेड़ ने फूंकी ये मुझमे जान है,
अब इसकी जड़ों में खाद बनके मुझे उतारना एहसान है,
इतना कहकर पत्ता वो उड़के जड़ में जाकर समा गया,
रिश्तो के इस मूल्य का सलीका था समझा गया,
बुजुर्ग बोला वाह रे कुदरत कितनी तू महान है,
टूटे पत्ते भी दिल से सोचते और बे दिल हुआ इंसान है।
© Meharban Singh Josan