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मरघट
बिना बोले जीना है
ये जीने का राज़
गूंगे को चाशनी मिले
मन में बसे मिठास
भीतर भीतर पनप रहा
प्रेम का निज स्वरुप
चैतन्य की बोध गम्यता
सतलज गंगा का जल
निर्मल निर्झरा से धुले
मन वाणी में जाये घुल
सुंदर भोर का अवतरण
चहुं दिशा फैला प्रकाश
नयन कटोरों में बसे कैलाश
अंतःकरण ज्योति जलाये
मरघट में इक विश्वास
© mast.fakir chal akela
ये जीने का राज़
गूंगे को चाशनी मिले
मन में बसे मिठास
भीतर भीतर पनप रहा
प्रेम का निज स्वरुप
चैतन्य की बोध गम्यता
सतलज गंगा का जल
निर्मल निर्झरा से धुले
मन वाणी में जाये घुल
सुंदर भोर का अवतरण
चहुं दिशा फैला प्रकाश
नयन कटोरों में बसे कैलाश
अंतःकरण ज्योति जलाये
मरघट में इक विश्वास
© mast.fakir chal akela
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