...

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खो गयी हूँ मैं
खो गयी हूँ मैं
अब ढूँढने की लिप्सा भी नहीं
शायद ज़्यादा थक गयी हूँ मैं
अपने अस्तित्व को पहचानना है मुश्किल
सबको ख़ुश रखने में गुम हों गयी हूँ मैं
हर रिश्ते को सजाने की होड़ में
ख़ुद का ख़ुद से ही नाता तोड़ गयी हूँ मैं
मैं क्या थी और क्या बनना चाहती थी
वो सब तो जैसे पीछे छोड़ गयी हूँ मैं
अब तो ये लगता है सबके लिए जीते जीते
ख़ुद जीना ही भूल गयी हूँ मैं
शायद कहीं खो गयी हूँ मैं
© Ritu Verma ‘ऋतु’