...

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एक मकां हुआ करता था,
जरा नजदीक ही में था, यहां मेरा यार रहा करता था,
उडा तूफां में उसका यहां, एक मकां हुआ करता था,

और बयां कैसे करें, गुजरे जो मौसम बेहयाई पे,
आ पड़ी कलियों पे, यहां गुलिस्तां हुआ करता था,

वीरान है बज़्म-ए-सुख़न, तालिब-ए-दीदार शामों की,
कभी गलियों में सुखनवर की, मज्मा हुआ करता था,

और कैफ़ियत अब तो आलम-ए-अज्साम जैसी है,
एक वक्त पे साकी शोहरत ए खास हुआ करता था,

पाबंद है आमद-ओ-रफ़्त अब उस राह पर देखो,
मियान-ए-शहर पुर-मसर्रत बाजार हुआ करता था,

और था जिन्हें दस्तरस खुद पे, उन्हें बीनाई ले बैठी,
रुख हुआ फिर अपने शहर, इतमीनां हुआ करता था,


© #mr_unique😔😔😔👎