...

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ज़िंदगी
धूप छाँव सी ज़िंदगी है
कभी छाँव में देर तक रहना पड़ता है
तो कभी धूप में जलता पड़ता है
ज़िंदगी में हर मोसम को सहना पड़ता है
जिस तरह हर मोसम एक जैसा सा नहीं होता है
इसी तरह हर इंसान की ज़िंदगी एक सी नहीं होती है
कभी छाँव की ख़ुशी में इन्सान हँसता है
तो कभी धूप के दुख से इन्सान जलता है
इंसान की यूही उम्र बीतती जाती है
धन दौलत रिश्ते छोड़कर इंसान चला जाता है
इन्सान अपनी करनी के फल साथ लेकर जाता है h