...

7 views

" प्रेम रस प्याला "
नवपल्लव की करता हूं मैं
अस्वादन उस मधुर प्रेम परागण की
जो मेरे उर में उमड़ता है चिर सागर,
प्रेम की निश्छल छवि नेत्रों में अंकित है
मेरे मन के अंतर्मन में रचता बसता है
वो लुभावने प्रतिबिंब अप्रतीम
शशि मुख मंडल,
बहती है उसके अलकों से
रजत प्रेम फुहारें, सराबोर हुआ मैं,
अंग अंग पुलकित होते हैं
जैसे प्रभा की रक्त...