मंज़िल ही साथ निभाती है।
न तमतमाती भांनू की रौशनी से,
न होता है कुछ पिघलतीं चांदनी से।
समय के शाख से जिम्मेदारी के पात से
चुराने पड़ते हैं ज़िंदगी के महकती खुशबू,
तो कहीं खिलते...
न होता है कुछ पिघलतीं चांदनी से।
समय के शाख से जिम्मेदारी के पात से
चुराने पड़ते हैं ज़िंदगी के महकती खुशबू,
तो कहीं खिलते...