मैं हिंदी हूं।
स्वयं में समागम किया है,
न जाने अपनी ही कितनी बहनों को,
फिर भी अपने ही घर में,
परायापन सा करती हूं महसूस।
अपनों के द्वारा ही,
कभी अछूत सा
व्यवहार किया जाता है मुझसे,
मेरे अपने ही,
मुझ में बातें करने से,
महसूस करते हैं शर्म।
न जाने क्यों ?
अपेक्षित हूं अपनों से ही,
आर्यावर्त जो मेरा मायका है,...
न जाने अपनी ही कितनी बहनों को,
फिर भी अपने ही घर में,
परायापन सा करती हूं महसूस।
अपनों के द्वारा ही,
कभी अछूत सा
व्यवहार किया जाता है मुझसे,
मेरे अपने ही,
मुझ में बातें करने से,
महसूस करते हैं शर्म।
न जाने क्यों ?
अपेक्षित हूं अपनों से ही,
आर्यावर्त जो मेरा मायका है,...