हम महकने लगे थे..... By-The Sagar Raj Gupta {श्रृंगार रस एवं करुण रस कवि}
The Sagar's Poetry Collection:-
हम परिंदा नहीं थे खुले आसमान के,फिर भी चहकने लगे थे...
गलती से ही सही छुआ था आपने एक बार, तभी से हम महकने लगे थे।
याद है हमे वो दिन, जिस दिन आपने हमे अपना कहा था,
हम तो थे पूरे होसो हवास में, फिर भी मुझे सपना सा लगा था,
हम खड़े-खड़े अचेत मुद्रा में रह गए थे घंटों तक आपको देखते हुए,
ख़ुदा कसम आपमे ही जन्नत का साया नज़र आया था ।
आप तो न उर्वसी थी और न ही थी मेनिका, फिर भी हम बहकने लगे थे....
गलती से ही सही छुआ था आपने एक बार तभी से हम महकने लगे थे ।
आपको रब की रुबाई कहु या ख़ुदा की ख़ुदाई कहु,
आपको रोज माँगु वो मन्नत या भगवान की अच्छाई कहु,
मेरे स्वप्न देश की...
हम परिंदा नहीं थे खुले आसमान के,फिर भी चहकने लगे थे...
गलती से ही सही छुआ था आपने एक बार, तभी से हम महकने लगे थे।
याद है हमे वो दिन, जिस दिन आपने हमे अपना कहा था,
हम तो थे पूरे होसो हवास में, फिर भी मुझे सपना सा लगा था,
हम खड़े-खड़े अचेत मुद्रा में रह गए थे घंटों तक आपको देखते हुए,
ख़ुदा कसम आपमे ही जन्नत का साया नज़र आया था ।
आप तो न उर्वसी थी और न ही थी मेनिका, फिर भी हम बहकने लगे थे....
गलती से ही सही छुआ था आपने एक बार तभी से हम महकने लगे थे ।
आपको रब की रुबाई कहु या ख़ुदा की ख़ुदाई कहु,
आपको रोज माँगु वो मन्नत या भगवान की अच्छाई कहु,
मेरे स्वप्न देश की...