मैं समझ ना पाऊं, क्या ?
शब्दों में बँध सी गई हूं
यूं सिमट सी गई हूं
गहराई इतनी है, कि माप ना पाऊं
अपने ही ख्यालों को,
भाप ना पाऊं।
क्यों शाम इतनी उदास है?
क्यों शब्द नहीं मेरे पास है?
क्यों सब मुरझा गया है ?
शब्दों मे उदासी सी है
आज, ऐसी निराशी सी है
क्या मौसम...
यूं सिमट सी गई हूं
गहराई इतनी है, कि माप ना पाऊं
अपने ही ख्यालों को,
भाप ना पाऊं।
क्यों शाम इतनी उदास है?
क्यों शब्द नहीं मेरे पास है?
क्यों सब मुरझा गया है ?
शब्दों मे उदासी सी है
आज, ऐसी निराशी सी है
क्या मौसम...