#माटी और कुम्हार संवाद
#माटी और कुम्हार संवाद
✍️
माटी कहे कुम्हार ते, दे काची चाक चढ़ाए,
जो चाहे सो गढ़ राखिए, आग तपी न गढ़ाए।
✍️
माटी को तू रौंद दियो, रौंद दियो तन सार,
जो मैं रौंदन लागी तोहे, न तन रहे ना सार।
✍️
मैं माटी बिन मोल थी, गूँथ ठोक कर दियो पकाए
माटी ते घट गढ़ दियो, जो जग की प्यास बुझाए।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
✍️#रंजीत कौर
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माटी कहे कुम्हार ते, दे काची चाक चढ़ाए,
जो चाहे सो गढ़ राखिए, आग तपी न गढ़ाए।
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माटी को तू रौंद दियो, रौंद दियो तन सार,
जो मैं रौंदन लागी तोहे, न तन रहे ना सार।
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मैं माटी बिन मोल थी, गूँथ ठोक कर दियो पकाए
माटी ते घट गढ़ दियो, जो जग की प्यास बुझाए।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
✍️#रंजीत कौर