...

10 views

गौरैया
मेरे घर का पता तू भूल गई,
या गांव की गली बिसराई है।
इमारतों के इस झुरमुट में ,
तू क्या करने को आई है।

क्या मेरे घर के ऊपर ,
रोटी आज थी नही पड़ी।
या मेरे घर के बाहर,
जो निमीया थी वो नही खड़ी।

क्या तू मुझे सुनाने को,
याद ले सबकी आई है।
या मुझसे नाराज़ तू,
फ़रियाद लेके आई है।

क्या तुझको मेरी फ़िक्र सताई,
और लेने हाल तू आई है।
पर ऐ साथी न कभी सोचना,
मैंने तुझे किया पराई है।

क्या तुझे किसी ने कुछ बोला,
जो तुझको होता दुख है।
बोल री गौरैया बोल,
उतरा क्यूं तेरा मुख है?

अगर किसी ने कुछ बोल दिया,
तो सुन ले न ज़रा सी बात।
यहां तो ज़ाहिर भी न कर पाएगी,
तू अपने जस्बात।

मैं तो संग न रह पाया,
आ गया तुम सब से दूर।
पर जब तक वहां है हरियाली,
तू रह ले ना भरपूर।

जैसे बदली घर की रंगत,
कहीं मौसम बदल ना जाए।
खुले आसमान में कहीं,
बादल घने न छा जाएं।

मेरी चिंता न कर पगली,
नसीब है इक छत मुझको।
जिसके नीचे बैठे–बैठे,
याद करूं कुछ पल तुझको।

खैर अब तुम जाओ यहां से,
बस इतना ही फरमाऊंगा।
राम–राम कहियो सबसे,
लौट कभी तो आऊंगा।।
🐦🐦
ध्रुव

© Dhruv