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तुम खुद में ही क्यो खोये हो "पापा"।
हम तो रो देते है तुम्हारे सामने,
तुम अकेले में क्यो रोये हो पापा।
मैंने सुना था लोग भीड़ में खोते है,
आप खुद में ही क्यो खोये हो पापा।
हाँ मैं जानती हूँ ,
आपकी मजबूरी है पापा।
पर वो कैसी मजबूरी है,
जो आपसे भी ज्यादा जरूरी है पापा।
दिल में दर्द लिए, क्यो चैहरे पर,
झूठी मुस्कान लगाई है पापा।।
जब औलाद का दर्द देख नही सकते,
तो फिर ये मजबूरी की चोट,
क्यो दिल में छिपाई है पापा।।
हर बार हमे दुःखी देखकर ,
तुम क्यो रोये हो पापा ।।
मैंने सुना था लोग भीड़ में खोते है।
आप खुद में क्यो खोये हो पापा।।
© "अभिलाषा"खरे"
तुम अकेले में क्यो रोये हो पापा।
मैंने सुना था लोग भीड़ में खोते है,
आप खुद में ही क्यो खोये हो पापा।
हाँ मैं जानती हूँ ,
आपकी मजबूरी है पापा।
पर वो कैसी मजबूरी है,
जो आपसे भी ज्यादा जरूरी है पापा।
दिल में दर्द लिए, क्यो चैहरे पर,
झूठी मुस्कान लगाई है पापा।।
जब औलाद का दर्द देख नही सकते,
तो फिर ये मजबूरी की चोट,
क्यो दिल में छिपाई है पापा।।
हर बार हमे दुःखी देखकर ,
तुम क्यो रोये हो पापा ।।
मैंने सुना था लोग भीड़ में खोते है।
आप खुद में क्यो खोये हो पापा।।
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