...

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जी लो।
मन अगर साफ हो तो डरना क्यूं?
जब फैसला लेने के वक्त आया तब -
क्यूं बिखरने का गम सताते है?
कैसे बता दे की ये मन का सवाल है।

आंखों तो कुछ चुपाना ही नहीं
मन को तो बताने के चाह भी नहीं।
अगर जीना है तो खुल के जीना है
जिंदगी की मस्ती खुले जीने पे है।

जब मन और सुबान अलग केहते
तब मजबूरियां हमें पागल कर देते।
जीना तो मुस्कुराते-हस्ते - दिल खोलके
जहां मोहब्बत और मज़ा के साथ।

कोई भी मजबूरियां जिंदगी नहीं
वो एक मात्रा पार करने का सवाल है।
पार करना तो मुश्किल से ऊपर है।
पर अपनेलिए पार करके खुलके जी लो।।

© avn