...

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बेपरवाह इश्क़
बहुत परवाह था तुम्हें ज़माने के
बदनामियों की, इसलिए तुमसे हो गई हूं मैं दूर।

मेरे बेपरवाह इश्क़ ग़ज़ल बनकर,
आज मोहब्बत के गलियों में हो गई है मशहूर ।

मोहब्बत की उन गलियों में जाकर
सनम, एक बार मेरे उन ग़ज़लों को पढ़ना ज़रूर।

हर अल्फाज़ में अपनी ही तस्वीरों को
देखकर, तुमको भी ख़ुद पर हो जाएगा गुरूर।

जुदाई की गहराइयों में डूबने के बाद ही
मोहब्बत को मुकाम मिलता है,इश्क़ की यही है दस्तूर।
©हेमा