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"तुम"
तुम संग लिखती ख़्वाब ख़्याल
झूलती तुम्हारी बाहों मैं ।
क्यों नहीं कह सकती तुमसे
जो छिपा अंतर्मन में।
कभी ऐसा नहीं हुआ पहले
जो अब हुआ संग में।
मेरी फुर्सत में तुम व्यस्त
फुर्सत जब तुम्हें नहीं तब मैं।
नहीं मन को भाते सुर और सरगम
रंग वो अब क्यों नहीं मेरे में।
बाह ले जाती अँखियाँ काजल
स्याह बिखरती कोरा कागज़ में।
लिखने को आतुर कलम,
तुम्हें लिख छिपाऊ तुमसे मैं।।
© सांवली (Reena)
झूलती तुम्हारी बाहों मैं ।
क्यों नहीं कह सकती तुमसे
जो छिपा अंतर्मन में।
कभी ऐसा नहीं हुआ पहले
जो अब हुआ संग में।
मेरी फुर्सत में तुम व्यस्त
फुर्सत जब तुम्हें नहीं तब मैं।
नहीं मन को भाते सुर और सरगम
रंग वो अब क्यों नहीं मेरे में।
बाह ले जाती अँखियाँ काजल
स्याह बिखरती कोरा कागज़ में।
लिखने को आतुर कलम,
तुम्हें लिख छिपाऊ तुमसे मैं।।
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