...

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Happy वाली दिवाली
इसमे हिंदू, मुसलमान, करने की ज़रूरत है नही,
गलत! गलत है जो कोई भी करे वह गलत है,
हिंदू करे,
मुसलमान करे,
व ईसाई करे।
किन्तु...
कोई दूसरा यदि गलत कर रहा है तो हम भी गलत करे!
ये पागलपन है।
धर्म तो यह नहीं सिखाता।
defensive होना है, आप हो सकते हो।
protective होना है, आप हो सकते हो।
कोई बुराई नहीं, होना ही चहिए! किन्तु बोध के साथ!
मगर निर्बुद्धि होकर
इस तरह की पागलपंती बेवकूफी है।
दूसरा तो पागल है,
किंतु आप खुदको महापगल ठहराते है।
क्योंकी इस पागलपंती में आप ख़ुद का ही नुकसान कर बैठते है,
कौन ऐसा करता है पागल ही न!
remember Karma isn't a b**ch as people say.
Karma is the God.
and God is, who is never partial.
आपको फ़ल कभी इस बात का नही मिलता..
के आपने उसकी कितनी पूजा प्रार्थना की।
कितने घी के दिए जलाए, व कितने मोतीचूर के लड्डू चढ़ाए
या आपने उसकी तारीफ़ में कितने पूल बांधे।
वह रिशवत खोर नही.
हम तो स्वयम जैसे है,
अपने परमात्मा को भी वैसा ही समझते है।
'you like me, I like you',
'you praise me, I will Praise you too!'
दिवाली का पर्व प्रेम का है। खुशियां बांटने का ...
और प्रेम जताने के, खुशियां बांटने के और तरीके हो सकते है।
असहाय एवम निर्दोष प्राणियों को यूं अकारण परेशान करने व तकलीफ़ पहुंचाने वाले पर्व कभी आपके घर खुशियां नही ला सकता है। स्मरण रखे!
फिर वह पर्व, हिंदू का हो या मुसलमान का।

देवी-देवताओं की पूजा करने का अर्थ क्या हैं?
उनके गुणों को धारण करना, व उनके गुणों को जीवन मे आमंत्रित करना।
आप लक्ष्मी की पुजा करते है! क्यों?
क्योंकि लक्ष्मी को आप जीवन में चाहते है।
ठीक!
किंतु आप यह क्यों नहीं स्मरण रखना चाहते,
लक्ष्मी विष्णु की ही अर्धांगनि है।
जहा विष्णु, वही लक्ष्मी।
और विष्णु कौन है?
'कर्म' के देवता।

"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥"

तो वह दुष्ट संसारी होंगे ऐसा ज़रूरी नहीं, आपके
भीतर के दुष्ट भी हो सकते है।
जिसका नाश करने वे आएगा...
अनुहोने अर्जुन के अहंकार का भी नाश किया,
और दुर्योधन का भी,
जो जैसा उसके लिए उसका रूप वैसा उसका हथियार वैसा।
सो लक्ष्मी को यदी पाना हो तो व्यक्ति को विष्णु सा होना चहिए,
करुणानिधि, किन्तु न्यायप्रिय,
सत्यनिष्ठ।
तब लक्ष्मी आपो आप आपके जीवन को अपना धाम बनयाएगी।
महज़ दिवाली पर घर की सफ़ाई करने से कुछ न होगा।
लक्ष्मी भी दुर्गा की ही संतान है, एवम शिव की ही पुत्री भी
सो DNA तो उसका वही हो।
भिन रूप है उसका
किंतु गुण धर्म तो उसका वही होगा।
शिव से जन्मी है,
तो शिव में ही रहना पसंद करेगी।
अर्थात 'परिष्कृत मन'।
घर तो साफ़ कर दिया,
किन्तु मन मेला,
कचड़े से भरा हुआ
नहीं चलेगा।

और फिर राम के आने खुशी में तुम यह पर्व मनाते हो
हालाकि राम भी तो कौन? विष्णु ही है!
खेर उस पर जाएंगे तो बात ज़रा लंबी हो जाएगी।
तुम्हे राम इतने प्रिय है,
के दिवाली का पर्व तुम इतने धूम से मनाते हो।
हालाकि मै राम को ज़्यादा नहीं सराहती
मुझे कृष्ण अधिक प्रिय है।
उन्होंने एक नारी के जीवन को दुख से भर दिया।
एक नारी स्वयं ब्रह्म् समान है।
और कृष्ण ने धर्म के लिए राधा को छोड़ा भी किन्तु
धर्म के लिए ही हृदय में रुक्मणि होते हुए भी 16000 स्त्रीयों का दुख ले लिया।
किंतु मैं इस सत्य को भी मानूंगी
राम से सुंदर,
राम से सौम्य पुरुष मिलना मुश्किल है।
किन्तु राम से तुमने सिर्फ़ ...
सीता को सदेव अकेला छोड़ देना सीखा,
उसकी तकलीफों, परेशानियों में भी सदेव अकेला छोड़ देना सीखा।
तुमने सीता के चरित्र पर सवाल किए...
किन्तु ख़ुद के चरित्र का प्रमाण पत्र नहीं दिया
मेरी दृष्टि मे पुरुष वो हो,
स्त्री के दुख को हर ले,
नाकी जहां नारी जीवन जहा यूंही
त्याग बलिदान, दुख तकलीफों से भरा पड़ा उसके जीवन को और नर्क समान बना दे।
तुमने राम से सिर्फ़
महज़ नारी को तकलीफ़ देना ही सीखा।

किन्तु राम में जो अच्छा है वह तो तुम राम से ना ले सकें,
उस व्यक्ती के भीतर कितना प्रेम होगा,
सौतेली मां को कष्ट न हो सो
खुद बनवास स्वीकार कर लिया भाई के
लिए उसने राज पद त्याग दिया।
और तुम राज पद त्यागोगे!
तुम तो भाई कभी हड़प कर खा लेने वालो में से हो।
कम से कम मैने तो यह देखा है
और तुम सौतेली मां के लिए बनवास ग्रहण करोगे!
तुमने तो खुद मां शब्द को ही MC, BC ki gaali
बना रखा है
और राम तो ख़ुद कष्ट लेकर दुसरे को खुशी देने का प्रतीक है ना,
और तुम क्या करते हो!
चंद सेकंड्स के धमाके के आंनद के लिए तुम
इन दिनों दूसरे का जीवन नर्क बना देते हो।
और तुम सोचते हो तुम्हारी पूजा सफ़ल हो जायेगी!
मैं कहती हु नही होगी सफ़ल।
दिवाली आपके जीवन मे ढेर सारी खुशीया लेकर आएगी।
मै कहती हु नहीं आएंगी!
और जो बची है वो भी छीन जाएगी।
यदि यहीं आपके कर्म रहे तो...
क्योंकी जो आप देते हो वही लौट कर आता है
वो भी multiplication मे..!
पूजा प्रार्थना सफ़ल होती है।
निश्चित रूप से सफ़ल होती है,
किन्तु कब? जब आपके कर्मों की दिशा सही होती है।
और यह हो सकता है तब,
जब पुजा, प्रार्थना के साथ आपका बोध भी जागरुक हो,
बोध नहीं, तो भक्ति ही सही।
किंतु संसार वाली भक्ति नहीं,
भक्ती प्रेम का ही एक रूप है
और प्रेम आपो आप मे बोधपुर्ण है।
किन्तु...
मैं पाप करू दानवों वाले,
और फल खाऊ देवताओं वाले!
नहीं हो सकता!
किंतु ये पटाखे फोड़ते हुए संसार की सारी मंहगाई कम हो जाती है नई!
पेट्रोल महंगा हो जाता है,
फल सब्जी महंगी हो जाति है
तो आपके नस मे दुखने लगता है।
और पटाखे बड़े शौक से फोड़ते हो बता बता के,के मैं इतनी महंगी वाले पटाखे लाया।
मैने इतने के पटाखे फोड़ इस बार....
क्यों धरती माता से अपने लिए श्राप मांगते हो...
यू मेरे पिता जी से मेरे अधिक मत मिलते नही,
किंतु मुझे खुशी होती है जब वे कहते है।
(यह कुछ दिन पहले की ही बात है)
जब कोई यह बात करता है
की इतनी मंहगाई बढ़ गईं
तो वे कहते है "आप कहते है महंगाई की बात, अभी दिवाली में आप ही 10,000 के पटाखे लाके फोड़ेंगे,
कहा है गरीबी?" "कहा है मंहगाई तब!
कहा है महंगाई मुझे बता दीजिए..
जब ₹20 petrol था कितनी गाड़ियां आपको सड़क नज़र आती थी,
कितने लोगो की हैसियत भी थी एक स्कूटर खरीदने की
आज भले पेट्रोल का दाम बढ़ता हो किंतु..
लोगो का गाड़ियां खरीदना तो कम नहीं होता और एक एक घर दो दो तीन तीन चार चार गाड़ियां है।
फिर आप बात करते है महंगाई की!"
मुझे अच्छा लगा!🙂

दिवाली पर्व है प्रेम का इसे प्रेम बांट कर मनाओ
जो already तकलीफ़ में है, उन्हें और कष्ट देके नहीं
उनकी कष्ट दूर करके दिवाली मनाओ।
राम की पुजा करते ही हो जब,
कुछ गुण राम के धारण भी करो।

बाकि प्राणियों का छोड़ दो ...
उनकी तकलीफों के बियोरा का तो अंत नहीं
किंतु आप...
इंसान में ही देखलो, किसी घरमे बढ़े बूढ़े होंगे,
किन्ही को सांस की तकलीफ होंगी अस्थमा हो सकता है
आपके महज़ एक शौक एवम मजे के कारण..
.. आपके इन कारनामों से किसी की तकलीफ कितनी बढ़ जाती होगी कभी आपने सोचा है!
और कितनो के घरमे नए बच्चे ने जन्म लिया होता है या कुछ ही महीने या साल भर का शिशु होता है।
उनके सहन करने और सुनने की छमता अभी कितनी संवेदनशील होगी।
दिवाली के ये कुछ दिन उस बच्चे और उसकी मां के लिए कितने मुश्किल भरे हो जाते है!
कभी आपने सोचा है?
नही सोचा ना!
तो सोचो!
वरना ऐसा न हो...
जब कर्म का वार आप पर
पड़ता है तो फिर कुछ सोचने की फुरसत नहीं रहती।
और तब कुछ सोच के मतलब भी नहीं।

और जो कुछ भी प्रकृति के खिलाफ है,
प्रकृति उसका बंदोबस्त करवा ही देती है
सीधी उंगली से न सही तो,
टेडी उंगली से ही सही,...
याद नहीं ... कोरोना!
दो साल...!
लोग रो रहे थे बिलक रहे थे।
और मै खड़ी चुप चाप देख रही थी।
ऑक्सीजन सिलेंडर न मिले तो सरकार दोषी ...
और खुदने अपने आंगन के पेड़ काट डब्बे जैसे घर बना लिया।
क्यों?
ऑक्सीजन थोड़ी चहिए जीने के लिए
बस बडा घर चहिए...
और अभी भी जो लोग थोड़ा बहुत पर्यावरण को बचाने की चेष्ठा करते है
अथवा आपके पाप कर्मों को वो धोने की कोशिश करते है
तो आपको उनसे प्रोब्लम होती है।
कोई पेड़ पौधे उगता तो कुछ मुरख पड़ोसी कहते है सूखे पत्ते गिरते है,
मच्छड़ आते है इसीलिए घर में पेड़ पौधे नही होने चहिए।
मैने कहा ठीक है डेंगू से ही बचना,
फिर oxygen ki तो आपको ज़रूरत नही
फिर और कोई लहर आ जाए तो सरकार को गाली मत देने लग जाना।
गाय को पानी पिलाओ तो कहते वे गोबर करते है।
और ख़ुद दूध की दुकान खोल रखी है।


मेरे घर भी आई थी कोरॉना माता,
मैना कहा माते आपको जो ठीक लगे वह करे।
फिर उन्होंने कहा नही नहीं मै गलत घर घुस गई,
दुसरे का ठिकाना खोजते खोजते यहां पहुंच गई।
खैर जब आई ही हु तो थोड़ा दिन यहां भी थोड़ा आराम फरमा लू,
मैने कहा जैसी आपकी मर्जी....
किन्तु फिर कुछ दिनों बाद कोरोना माता दर्शन दे चली गई।
पापा was cured!
किंतु बड़ी अजीब बात थी He always praised good deeds of government! No matter whose party does the job.
and जब तक private me treatment chal रहा था, he found no relief but from the day he was given the medicines from the government health center.
very next day he found some relief and .. in a very short period of time he came out of it.

किंतु हमारी यदि यहीं स्थिति रही तो,
तो कोरोना के बच्चे... नाती पोते अभी आने बाकी है।
देखते नही आज हमारे गाइयों की क्या स्थिति है।
तुम यदी सोचते हो इससे हमे क्या?
किन्तु जान लो जगत में यदी गाय नहीं रहि ...
तो जान लो ...
ये जो दूध, दही, मलाई, मक्खन, चीज ये जो तुम खाते हो न बड़े मजे से वे भी लापता हो जाएंगे।
आधे से ज्यादा हलवाई की दुकानों को बंद करना पड़ेगा
जिनकी मिठाईयां सिर्फ दुध से ही बनती है।
और वो छोड़ दो ...
तुम सोचते हो...
दाल, चावल, सब्जी रोटी फल फलादी आदि यह भी तुम्हे मिल पाएंगे।
इनकी भी फिर एक बार मारा मारी हो जाएगी...
क्यों?
केमिकल फार्मिंग तो चला भी लोगे तो कब तक चलाओगे?
एक रोज़ आएगा दिन,
ये भूमि भी अपना दम तोड देगी,
क्योंकि गाय न होगी तो गाय के गोबर की खाद कहा से लाओगे?
और खेती लगभग अधूरी है गाय के गोबर बीना।
यूंही भूमि में हार्मफुल bacterias and virus की तादाद बढ़ गई है और beneficial bacterias कम अथवा न के बराबर हो गए है।
ऐसे मे हमे unnecessary दिमाग को active रखने की बजाए...
ह्रदय की संवेदनशीलता को बढ़ाने की ज़रूरत है।
पूरा जगत जब एक एक कर अपने हृदय में लौटने लगेगा,
तब आपो आप, धरा और जगत की frequency बदलने लगेगी,
और आपो आप यह जगत पुनः जन्नत बन जाएगा।
हमे दुसरे किसी जन्नत व स्वर्ग की कामना नहीं करनी पड़ेगी।
उस दिन होगी मेरी दिवाली यथार्थ में Happy.
हकीकत मे हम हर तरह की सारी लड़ाई बाहर लड़ रहे है,
किंतु यथार्थ युद्ध तो हमारे भीतर चल रहा।
युद्ध भी भीतर है,
और शांति का स्त्रोत भी भीतर ही।
सुख, खुशी,आनंद, प्रेम सभी का दीप भीतर ही है।
बाहर दीपक जलाओ, अच्छी बात है
बहुत अच्छी बात है!
किंतु भीतर भी ज़रा झाक लो कभी।
वहा भी कोई ज्योति, वर्षो से जन्मों से जलने को बेताब है।
उस पर भी गौर फरमाओ कभी।
तब तुम असल Happy Diwali का अर्थ समझोगे।

आभार 🙏!

दिवाली सभी के लिए खुशहाल हो!
© D💚L