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अकेले ठीक थी
मैं अकेले ही ठीक थी
जब से रिश्ते बन गये।
तब से खुद को भूल गयी।
न वक़्त अपने लिए न कुछ करने के लिए।
जब से रिश्ते बनाये इन्ही मे उलझ गयी हु।
अकेले उतने गम नहीं थे।
जितने रिश्ते मुझे दे रहे है।
अकेले थी तो डर क्या है पता नहीं था।
रिश्ते मे अंदर डर और चिंता दोनों है।
© संगीता बिष्ट नेगी
@20/7/2020
जब से रिश्ते बन गये।
तब से खुद को भूल गयी।
न वक़्त अपने लिए न कुछ करने के लिए।
जब से रिश्ते बनाये इन्ही मे उलझ गयी हु।
अकेले उतने गम नहीं थे।
जितने रिश्ते मुझे दे रहे है।
अकेले थी तो डर क्या है पता नहीं था।
रिश्ते मे अंदर डर और चिंता दोनों है।
© संगीता बिष्ट नेगी
@20/7/2020
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