...

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वक़्त का तकाज़ा
वक़्त का तकाज़ा था ,बदलने लगी हूँ अब ! शब्दों को माप तौल कर कहने लगी हूँ अब !

अपेक्षा नहीं रखती किसी रिश्ते में ,सुकून की नींद मुझको ,आने लगी है अब !
जबसे बहते हुए आंसुओं के निशान पोंछे है ,आईने को भी पसंद आने लगी हूँ अब !

भावनाओं में बहकर अब खुद को परेशां नहीं करती ,सीने में पत्थर सा कुछ रखने लगी हूँ अब !

कोई मेरा है तो उसे परवाह मेरी भी होगी ,आजकल कुछ लोगों को आज़माने लगी हूँ अब !

खुद से कई सवाल करने लगी हूँ अब !

दिल से आज भी सबका ख्याल रखती हूँ पर उनकी बेपरवाही कम असर करती है आजकल !

टूट कर अबतक सबका मान रखा है , "ना "बोलने का फन सीखने लगी...