...

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अच्छा है
तुम मस्त मौला
राहगीर , मै कैद घर की इन
चार दीवारों में ......
तुम खुले गगन के पंछी
मै पिंजड़े बंद आशियाने
में , जमी , आसमा का होता
है सिर्फ और सिर्फ संगम
अफसाने में ,तुम बहते
सागर की धारा हो .......
मै ठहरा एक किनारा
तुम खुशियों का सवेरा
मै काला घना अंधेरा
तुम मुझ से दूर रहो ये
अच्छा है , मै जिस किसी
को अपना कह दूं , फिर
उसका पराया होना पक्का
है.....।


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