...

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नारी🍁
मैं नारी हूं, स्त्री हूं मैं।
कभी अपनों से मारी गई, कभी परायो से।

कभी कभी मारा गया अजनबी से सायो में।
कभी कभी तंग करते मुझे चलती राहों में।

कभी सहि मेंने ज़माने की वेदना सारी।
कभी कभी अफसोस करूं कि फिर मैं क्यूं हूं "नारी"।

हर नित्य नये दिन तड़पी मैं।
कभी जाने में ,कभी अनजाने में।
संताप सहती "नारी" दिनोदिन नारीत्व के तहख़ाने में।

कभी मान में, कभी सम्मान में।
कुचले जाते है हर रोज़ मेरे अरमान झूठी सी शान में।

कभी कपट भरे प्यार में, कभी अपनों के दुलार में।
छली जाती हूं हर बार मैं "नारी", मैं "स्त्री" इस संसार में।

"फिर भी मैं कमजोर नहीं।
अब मुझ पर चले किसी का ज़ोर नहीं।
चंडी स्वरूपा, काली मैं, झांसी की मर्दानी मैं।

कर लो अभिमान जब तक "नारी" मौन है।
वरना "नारी" से ऊंचा यहां कोन है!!