#नीर और नारी
हे नारी ! तुम हो तो जग में,
कोमलता नमी और आद्रता है।
तुम हो तो जीवन में तृप्ति है।
तुम नहीं तो कहाँ तरलता,
बस शेष होगी नीरसता,
शुष्कता और बंजरता।
यदि देने पर आ जाओ तो,
सर्वस्व लुटा दो तुम,
जो न चाहो तो पानी माँगने
को तरसा दो तुम।
प्रेम के सागर में प्रेममय होकर
बह जाती हो तुम,
अस्मत से खेलनेवालों को
अपने आंसुओं में बहा देती हो तुम।
तुम सुजला हो नारी,
सजला, नीरजा, नीरूमय,
तृप्ति का पर्याय हो तुम।
नीर हो या नारी,
जल्द नियंत्रण खोते नहीं।
यदि धीरज का बांध टूट जाए,
तो फिर नियंत्रित होते नहीं।
या तो तृप्ति देते हैं ,
या जलमग्न करते हैं।
नारी, ईश्वर द्वारा रचित
सर्वश्रेष्ठ रचना हो तुम और
सृष्टि का आधार भी हो तुम।
सहनशक्ति, उदारता और
रचनात्मकता की प्रतिमूर्ति हो तुम
तो दुर्गा और काली का अवतार भी हो तुम
हे पुरुष! यह स्त्री है,
तुम्हारा वामांग है सदा ।
इसे कोमल ही रहने दो,
पाषाण न करो।
रहने दो उसको खुदको थोड़ा सा खुद में।
उसकी कोमलता पर कुठाराघात न करो।
उसकी कोमलता को शाश्वत रखने का,
कुछ तुम भी प्रयास करो।
✍️🌹रंजीत © ranjeet prayas
कोमलता नमी और आद्रता है।
तुम हो तो जीवन में तृप्ति है।
तुम नहीं तो कहाँ तरलता,
बस शेष होगी नीरसता,
शुष्कता और बंजरता।
यदि देने पर आ जाओ तो,
सर्वस्व लुटा दो तुम,
जो न चाहो तो पानी माँगने
को तरसा दो तुम।
प्रेम के सागर में प्रेममय होकर
बह जाती हो तुम,
अस्मत से खेलनेवालों को
अपने आंसुओं में बहा देती हो तुम।
तुम सुजला हो नारी,
सजला, नीरजा, नीरूमय,
तृप्ति का पर्याय हो तुम।
नीर हो या नारी,
जल्द नियंत्रण खोते नहीं।
यदि धीरज का बांध टूट जाए,
तो फिर नियंत्रित होते नहीं।
या तो तृप्ति देते हैं ,
या जलमग्न करते हैं।
नारी, ईश्वर द्वारा रचित
सर्वश्रेष्ठ रचना हो तुम और
सृष्टि का आधार भी हो तुम।
सहनशक्ति, उदारता और
रचनात्मकता की प्रतिमूर्ति हो तुम
तो दुर्गा और काली का अवतार भी हो तुम
हे पुरुष! यह स्त्री है,
तुम्हारा वामांग है सदा ।
इसे कोमल ही रहने दो,
पाषाण न करो।
रहने दो उसको खुदको थोड़ा सा खुद में।
उसकी कोमलता पर कुठाराघात न करो।
उसकी कोमलता को शाश्वत रखने का,
कुछ तुम भी प्रयास करो।
✍️🌹रंजीत © ranjeet prayas