#नीर और नारी
हे नारी ! तुम हो तो जग में,
कोमलता नमी और आद्रता है।
तुम हो तो जीवन में तृप्ति है।
तुम नहीं तो कहाँ तरलता,
बस शेष होगी नीरसता,
शुष्कता और बंजरता।
यदि देने पर आ जाओ तो,
सर्वस्व लुटा दो तुम,
जो न चाहो तो पानी माँगने
को तरसा दो तुम।
प्रेम के सागर में प्रेममय होकर
बह जाती हो तुम,
अस्मत से खेलनेवालों को
अपने आंसुओं में बहा देती हो तुम।
तुम सुजला हो नारी,
सजला, नीरजा, नीरूमय,...
कोमलता नमी और आद्रता है।
तुम हो तो जीवन में तृप्ति है।
तुम नहीं तो कहाँ तरलता,
बस शेष होगी नीरसता,
शुष्कता और बंजरता।
यदि देने पर आ जाओ तो,
सर्वस्व लुटा दो तुम,
जो न चाहो तो पानी माँगने
को तरसा दो तुम।
प्रेम के सागर में प्रेममय होकर
बह जाती हो तुम,
अस्मत से खेलनेवालों को
अपने आंसुओं में बहा देती हो तुम।
तुम सुजला हो नारी,
सजला, नीरजा, नीरूमय,...