...

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बहतर हो जाए
बहतर हो जाए


क्यू उलझना,
क्यूं झूलसना,
क्यूं कहना,
क्यूं सुन्ना,

मुश्किल है

तर्क को जब समझा नहीं:
मैं चिल्लाता था सुना नहीं:
अब क्या लफ्ज़ी फ़ोन
और क्या बह्स ओ तकरार


जब इज़्ज़त को तुम लांग,
दीवार बे-हिसी की उठाईं,
दर्द बड़ाया दिल मैं,
और मतलब ले आई,

मैं यूं सोच सोच फिर रोया,
शब को लम्हे भर न सोया,

अब क्या मुझे ढुंढोगे कुछ आसान ढुंढो

ये भी तो बीत के बीतेगा
जिस्म हर दर्द सी देगा
तू कर जा जो हो जाए
जब जीना है तो जी देगा

जब दर्द उठा रूह तक मैं,
फिर तू क्या कुछ सी देगा
चल छोड़ कहूं क्या तुझसे
ना कुछ दे सकता ना दे देगा


फिर तू क्या कह कर भी क्या कह देगा
खुदसर जो है तू क्यूं कुछ सेह देगा


जब वरख तेरे पलटेंगे
रोशनी हो जाएगी कम
बात समझ जब आएगी
तब बात ही हो खत्म

तू रोक सका न खुद को रोक क्या तू कुछ पाएगा
कुछ आसान ढुंडो मुश्किल तुझसे ना हो पायेगा


तू बदल बदल के क्या बदलेगा
फितरत बदलेगा हसद बदलेगा
चल छोड कहूं क्या तुझसे
ना तू कुछ बदल स्कता न बदलेगा

तू सोच समझ कर सोच बना ले
खुद को भी कुछ यकीन दिला ले



ऐसा ना हो धुंड कर तू मुश्किल आसान हो जाए
होते होते बद से बद्दतर कुछ बहतर हो जाए

बहतर हो जाए बहतर हो जाए बहतर हो जाए
© Sarim