...

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बहतर हो जाए
बहतर हो जाए


क्यू उलझना,
क्यूं झूलसना,
क्यूं कहना,
क्यूं सुन्ना,

मुश्किल है

तर्क को जब समझा नहीं:
मैं चिल्लाता था सुना नहीं:
अब क्या लफ्ज़ी फ़ोन
और क्या बह्स ओ तकरार


जब इज़्ज़त को तुम लांग,
दीवार बे-हिसी की उठाईं,
दर्द बड़ाया दिल मैं,
और मतलब ले आई,

मैं यूं सोच सोच फिर रोया,
शब को लम्हे भर न सोया,

अब क्या मुझे ढुंढोगे कुछ आसान ढुंढो

ये भी तो बीत के बीतेगा
जिस्म हर दर्द सी देगा
तू कर जा जो हो जाए
जब...