...

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◆ रेत अंजुरी ◆
तुम्हारी " गंगांबु " सी
पवित्र पीड़ायें , और
समझ उनके भाव ,
मैं उन्हें भर लेना चाहता हूँ
अपनी " अंजुरी " में ,

जिन्हें प्रवाहित न कर उस
लहर में ,, अपितु
मैं चुनूँगा अपनी हथेलियों को
एक " सूखा ररगिस्तान "

" परिव्रज्या " करता रहूंगा
कल्पों तक या अनंत तक
नही जानता ,,

पर मैं प्रबल हूँ अपनी आस्था
में , एक रोज मेरे अंदर भी
जाग्रत होगी वो शक्ति और
" समर्पण "

कि मेरी अंजुरी में भरा
वो " सूखा रेत " सोख़
लेगा तुम्हारी वो
सारी पीड़ाएँ और जख्म ,,

जिन्हें मैं जीना चाहूंगा
इस मृत्युलोक में
अनंत तक !!

© निग्रह अहम् (मुक्तक )

【 GHOST WITH A PEN 】