...

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जाने क्यों?
जाने क्यों...
नासमझ बन जाते है लोग।

कुछ गलत तो ना कहते हम,
बस कुछ अलग सोचते है,
तारीफ़ के दो लफ़्ज़ ना कह सको,
तो बुराई तो ना करो।

जो हम करते है,
वो अपने लिए है,
दूसरों को खुश करके तो,
मिली है उदासी हमेशा।

दर्द हमें भी बहुत है,
फ़िर भी मुस्काते है,
किसी को बुरा ना लगे,
इसलिए ज़ज्बात छुपाते है,
इल्म ये है, कि कोई समझ नहीं पाता है,
जाने क्यों।

जाने क्यों,
इल्म सदा ही जीत जाता है,
मेरे अल्फाज़ और ज़ज्बात,
सब दबे से ही रह जाते है,
जाने क्यों।

© RooHi