...

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अकेलेपन
अकेलेपन की मजा तुम क्या जानो ।
हजारों चांद की भीड़ में टूटते तारे सा मैं
मेरी घेहरती से जिन्दगी का एक अकेला सहारे सा मैं।
न उम्मीद किसी से न ऐतबार किसी पे
चमकते रौशनी महकती खुशबू से भरी शाम में
हजारों की भीड़ में शामिल अकेलेपन की सजा तुम क्या जानो।
मुस्कुराते चेहरे के नीचे छिपे शहमे से सख्स की अदा तुम क्या जानो।
हजारों चांद की भीड़ में शामिल किसी से रौशनी की उम्मीद नहीं।
जब दीया खुद के पास नही तो दीवाली कैसी।
न लोगों के ताने न लोगों की उम्मीदें
न सवाल न जवाब अकेलपन की मजा तुम क्या जानो।
न रिश्ते नाते न झगड़े न लड़ाई
बस मैं और मेरी तनहाई किसी समंदर सा शांत मैं अकेला
अकेलेपन की मजा तुम न जानो ।
खुशी से भरी हो तुम्हारी जिन्दगी
चारों तरफ खूबसूरत चेहरे हों
रौशनी हो हजारों चांद के पहरे हों।
रोने को कंधे हों कई।
हंसाने को लोग हों हजारों तुम्हरे चारों ओर।
सोते जागते तुम्हारे पास रौनक हो।
अकेलेपन की मजा तुम न जनों दुआ करते हैं।
अकेलेपन की मजा हम जानते हैं
अकेलेपन की मजा तुम क्या जानो।



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