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फ़रियाद मासूमों की
नन्हीं- नन्हीं आँखे देखो, चुपके से झांक रही है,
कब निकलेंगे बाहर घर से, चेहरे पे मायूसी है।
अब तो दिल भी ऊब गया है, घर में बैठे बैठे,
थोड़ा सा घूम आये बस, यही ख़्वाइश बाकी है।
शुरू में बहुत खुश हुए, जब पता चला छुट्टियों का,
लेकिन अब तो छुट्टियाँ ही हमको, काटने को आती है।
ऑनलाइन क्लासों से हमको, कुछ तो राहत मिलती है,
फिर वही दिन भर का रोना, खाओ-पियो फिर सोना है।
पहले तो हम शायद महफ़ूज़ थे, इस कोरोना राक्षस से,
बच्चो को भी पकड़ेगा कम्बख़्त, अब इससे भी बचना है।
फ़रियाद है सरकारों से, कुछ हमारे लिए भी करो मशक़त,
बचा लो हम मासूमों को, हम भविष्य के भारतवासी है।
राकेश जैकब "रवि"
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