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हां में हां मिला कर वह यूंही छलती रही
हां में हां मिला कर वह
यूंही छलती रही
थोड़े-थोड़े दूर पर ही
मुर्गा नई बदलती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
बॉयफ्रेंड ,दोस्त कहकर
अपने गिरफ्त में लाती रही
जेब खाली होने पर
गरदनिया देकर भगाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
सीधे-साधे लड़के को
मुफ्त में उल्लू बनाती रही
बिन खाए पिए
ग्लास यूं तुड़वाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
कई लम्हे इंतजार के
रात दिन गाती रही
रोज-रोज भागकर वहां
अपनी सेटिंग बढ़ाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
हमेशा खामोशी का फायदा
यूं ही उठाती रही
कसमें खा खा कर
गधा बनती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
हम मदहोश में उसकी
सरगम यू गाते रहे
और वह मंद मंद
उल्लू बनाकर मुस्कुराते रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
अपनी तलब लगाकर
बेचैनी यूं बढ़ाती रही
थोड़ी-थोड़ी देर में
हाय लिख कर सताती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
दो पल कह कर
2 दिन में ना आई
भर भर चूना लगाकर
नींद चैन सब कुछ उड़ाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
हम गुलाब लेकर
उसकी इंतजार करते रहे
वह गुल खिलाकर
मुझे बैल बनाते रहे
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
फूल सी चेहरा खिला कर
अप्रैल फूल बनाती रही
क्या कहें
यूं वह बरगलाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
रात के वादों को वह
दिन में भुलाती रही
अपनी ही बात हमेशा
जबरदस्ती मरवाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
कभी मोटा तो कभी दुबला कहकर
रोज सुबह दौड़ती रही
सली का क्या कहें
कुत्ते की तरह भागती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
यूंही छलती रही
थोड़े-थोड़े दूर पर ही
मुर्गा नई बदलती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
बॉयफ्रेंड ,दोस्त कहकर
अपने गिरफ्त में लाती रही
जेब खाली होने पर
गरदनिया देकर भगाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
सीधे-साधे लड़के को
मुफ्त में उल्लू बनाती रही
बिन खाए पिए
ग्लास यूं तुड़वाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
कई लम्हे इंतजार के
रात दिन गाती रही
रोज-रोज भागकर वहां
अपनी सेटिंग बढ़ाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
हमेशा खामोशी का फायदा
यूं ही उठाती रही
कसमें खा खा कर
गधा बनती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
हम मदहोश में उसकी
सरगम यू गाते रहे
और वह मंद मंद
उल्लू बनाकर मुस्कुराते रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
अपनी तलब लगाकर
बेचैनी यूं बढ़ाती रही
थोड़ी-थोड़ी देर में
हाय लिख कर सताती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
दो पल कह कर
2 दिन में ना आई
भर भर चूना लगाकर
नींद चैन सब कुछ उड़ाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
हम गुलाब लेकर
उसकी इंतजार करते रहे
वह गुल खिलाकर
मुझे बैल बनाते रहे
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
फूल सी चेहरा खिला कर
अप्रैल फूल बनाती रही
क्या कहें
यूं वह बरगलाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
रात के वादों को वह
दिन में भुलाती रही
अपनी ही बात हमेशा
जबरदस्ती मरवाती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
कभी मोटा तो कभी दुबला कहकर
रोज सुबह दौड़ती रही
सली का क्या कहें
कुत्ते की तरह भागती रही
हां में हां,,,,,,,,,,,,,,
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
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