...

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ग़ज़ल
राह में मुश्किलों के चलते-चलते,
हर लम्हा हर नफ़स सँभलते सँभलते ,
शौक हसरतो का पीछा करते करते,
गुजर जाते है यूँही चलते चलते ।

शाम की तन्हाई में जब घर आता है,
बस तसलियों से दिल बहलाता है ,
इक तलाश को पूरी करने में बेकरार होता है ,
धौखा खाता है फिर भी उसके पीछे जाता है ।

दिल के सारे अरमान अपनों पे लुटाता है,
खुद है खुद को भी भुल जाता है ,
हाले दिल कोई पूछने नहीं आता है,
मिला जिस पर सबर कर जाता है।

जब आइने से नज़र मिलाता है,
खुद ही खुद में खो जाता है,
जिंदगी बोझ है खुद को समझाता है,
इंसान बस हसरतो से खेलता जाता है ।

© पवन कुमार सैनी
© pawan kumar saini