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प्रकृति जैसी और कोई नही।
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
अब नैनो को सुकून है अब दूसरा कुछ देखने की चाह नहीं कोई,
मन आनंद से झूम उठा है इतना आनंद देता नही कोई,
हे प्रकृति तुझ जैसी प्रेम की मूरत और नही कोई।।
© anshu_✍️
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
अब नैनो को सुकून है अब दूसरा कुछ देखने की चाह नहीं कोई,
मन आनंद से झूम उठा है इतना आनंद देता नही कोई,
हे प्रकृति तुझ जैसी प्रेम की मूरत और नही कोई।।
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