...

38 views

मेरे लिखे मयखाने में
एक उम्र गुजर गई
ये पता लगाने में
एक घूंट भी बचा नहीं
मेरे लिखे मयखाने में

लिख लिख कर अपने
गानें बांटता रहा जमाने में
पर डर था उनको
मेरा नाम बताने में

तुम जो गाने सुनते हो
उनकी हकीकत पता नहीं
मेरा नाम ही छूपा गए वो
अब इसमें मेरी कोई खता नहीं

चाह कर भी मैं कुछ कह नहीं सकता
ये किस्सा बहुत पुराना है
पर्दे के पीछे मैं ही था
ये राज सबको बताना है


मेरे नाम का जिक्र हुआ
तो कसर छोड़ी नहीं
आंख दिखाने में
एक उम्र गुजर गई
अक्ल ठिकाने आने में
आज एक घूंट भी बचा नहीं
मेरे लिखे मयखाने में

गुमनामी का दर्द क्या होता है
आज दर्द होता है बताने में
एक घूंट भी बचा नहीं
मेरे लिखे मयखाने में

मैं तो नेकी करता रहा
औरों के लिए लिखता रहा
मेरे गानों का समंदर
यूं ही दरिया होता रहा
उनके पैसों का दरिया
यूं ही समंदर होता रहा
इसलिए मेरे लिखे गानों पर
औरों का नाम दिखता रहा
मैं यूंही हमेशा मिटता रहा

एक उम्र गुजर गई
ये पता लगाने में
एक घूंट भी बचा नहीं
मेरे लिखे मयखाने में

चंद्र पाल सिंह

© Chander Pal Singh