...

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तेरे शहर में
#मयखाने
जब से हुई है मेरी आमद शहर में तेरे
मुझसे रूठे रूठे सारे मयखाने हैं
जब से हुई है मेरी आमद शहर में तेरे
ये बादल बेवफ़ा लगते है,
उम्मीद के धागे भी टूटे टूटे है,
तेरी घर की खिड़की तो खुद
तेरे दीदार को तरस तरस जा
रही है,
मेरे जाने के बाद तेरे भी कदम वहां
कहां लौटे है,
सच है जहां कोई शहर में गुलाब ज़िंदा
न हो वहां कहां कोई
भौंरे जिया करते है,
ऐसे हर किताब में बदलते है कितने
किरदार,
पर हम तुम कहां बदले है...
सड़क भी रास नहीं आ रही आज
कल,
कैसे तमाशों में आज कल
हम उलझे है...?