शायरी।
जो मैं रोज लिखा करता हू।
हाँ वही तुम मेरी शायरी हो।
रोज जो पढ़ता हूं।
हाँ वही तुम मेरी आयत हो।
रोज ही जिस के
लिए तरसता हूँ मैं,
हाँ वही प्यास हो तुम मेरी।
जो अक्सर मैं सोचता हू।
हाँ वही सोच हो तुम मेरी।
तुम्हारी पहली पसंद हू।
हाँ तुम पसंद हो मेरी।
मैं जो तन्हा सा जीता हू।
उस तन्हा सी जिंदगी का
सहरा हो तुम मेरी।
धडकने धड़कती हैं।
बस तुम्हारे लिए ही।
हाँ तुम ही तो जिंदगी
जीने की वजह हो मेरी।
❤️
© KRISHAN MEENA
हाँ वही तुम मेरी शायरी हो।
रोज जो पढ़ता हूं।
हाँ वही तुम मेरी आयत हो।
रोज ही जिस के
लिए तरसता हूँ मैं,
हाँ वही प्यास हो तुम मेरी।
जो अक्सर मैं सोचता हू।
हाँ वही सोच हो तुम मेरी।
तुम्हारी पहली पसंद हू।
हाँ तुम पसंद हो मेरी।
मैं जो तन्हा सा जीता हू।
उस तन्हा सी जिंदगी का
सहरा हो तुम मेरी।
धडकने धड़कती हैं।
बस तुम्हारे लिए ही।
हाँ तुम ही तो जिंदगी
जीने की वजह हो मेरी।
❤️
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