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ग़ज़ल 5 : इश्क़ करता हूँ बहुत मगर जताया नहीं करता
इश्क़ करता हूँ बहुत मगर जताया नहीं करता
मैं उसके आगे कभी गिड़गिड़ाया नहीं करता

क़ातिल चोर निगाहों से चुराता है धड़कनें
मैं डरपोक सा नज़रें मिलाया नहीं करता

वो आ जाए सामने ख़ुद ब ख़ुद तो ठीक
मैं उसके घर के चक्कर लगाया नहीं करता

जिस महफ़िल में जाती है जान बन जाती है
उसके ख़ोफ से मैं महफ़िलें सजाया नहीं करता

डरता हूँ महोब्बत में कहीं तन्हा ना रह जाऊँ
मैं उसके साथ कोई कदम बढ़ाया नहीं करता

कितना डरता हूंँ मैं उसे खोने के डर से भी
वो पास आए भी तो अपनाया नहीं करता

उसका नींदों के रस्ते मेरे ख़्वाबों में आना
मैं टूटने के डर से ख़्वाब सजाया नहीं करता

उसकी परछाई छूने लगती है जब, मैं बेबस
छूना तो चाहता हूँ पर हाथ बढ़ाया नहीं करता

सोचता हूँ के सब बता दूँ उसको सही सही
फिर मिलने बुलाकर ख़ुद ही जाया नहीं करता

अपना मज़हब अलग है अलग ख़ुदा अपना
जानकर ये मैं कदम कोई बढ़ाया नहीं करता

इश्क़ तो करता हूँ मगर जताया नहीं करता
मैं उसके आगे कभी गिड़गिड़ाया नहीं करता ।।
© Pooja Gaur