...

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मैं कौन
"मैं कौन"

"पता ख़ुद का ही ढूढ़ रही
अब ना पूछो कि मैं कौन हूँ।
चलती नदिया सी अविरल
गहरा ठहरा एक समंदर हूँ।
बहती चंचल बयार बासंती
मरुथल का एक बबंडर हूँ।
खिलती पंखुड़ी फूलों की
सिमटी एक कली अनजान हूँ।
सीपी से छुपाये भाव मन के
उन्मुक्त खग की सी पहचान हूँ।
अरुणोदय से ले अभिलाषा
उम्मीदों भरी ढलती शाम हूँ।
आकाश भर सपन सलोने
संघर्ष धरा सा देती पैगाम हूँ।
सूरज का ताप लिये चलती
माथ चंद्रिका ऐसी अलबेली हूँ।
कहे कुछ अनकहे किस्से सी
अनबूझ बड़ी एक पहेली हूँ।
एहसास बारिश की बूंदों सा
तुहिन कणों सी पिघलती हूँ।
हिमशिखरों के श्वेत बर्फ़ सी
लावा के ज्वाला सी जलती हूँ।
उनींदी पलकों में जगती कभी
प्रबल पीड़ा की अनुभूति हूँ।
जीवन सच का दर्पण मेरा
मृत्यु की सुगम सी संभूति हूँ।
ढूढ़ेगो जब जब भी मुझको
अक्स कण कण में पाओगे।
गूजेंगी स्वर लहरियां मेरी
कर याद मुझे मुस्कुराओगे।
ना अब मुझसे पूछना कभी
कि मैं भला हूँ फिर कौन।
शब्दों का ज्वार भाटा सी
भाषा हृदय की बेबस मौन।"
"ऋcha"







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