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स्कूल फेयरवेल
स्कूल से निकलने की जल्दी और 12th में रुकने की देरी, आज हर पल आंखों के सामने दिख रहा है,
ना चाहकर जिया था जो सफर वो एक सपना बन आज, ना चाहते हुए भी बिखर रहा है।

जहां हर बेंच को तोड़कर कहते थे अरे अपना थोड़ी है कुछ, जो पागल हुए जाए,
आज उन्हीं बेंच से यादें जुड़ गई हैं आखिर कैसे इन्हें ऐसे छोड़कर जाएं ।

स्कूल की वो बिल्डिंग वो गंदी दीवारें जो कभी खंडर सी लगा करती थी ,
आज वही अपना खूबसूरत सा आशियाना, हीरो के महल सी लग रही थी।

सुबह धूप में खड़े होने से अच्छा बेहोश होकर मेडिकल रूम जाने का सपना था ,
सपना तो सपना रह गया लेकिन पीरियड्स छोड़ धूप सेकने वाला लम्हा भी तो अपना था ।

जिस स्कूल में कैजुअल्स में जाना एक शान की बात लगती थी,
आज उसी स्कूल की यूनिफॉर्म भी किसी शाही कपड़ों से कम नहीं लग रही थी ।

हां, बोर्ड क्लास में मजे तो बहुत किए थे दोस्तों के साथ मिलकर भी,
मगर ऐसे स्कूल वाले लॉयल फ्रेंड्स जिंदगी भर नहीं मिलेंगे ढूंढकर भी।

यह 12th का एंड स्कूल का एंड आज एक बुरा सा सपना लग रहा था,
ऐसा टूट रहा था दिल, कि जिंदगी की सबसे बड़ी यह दुर्घटना लग रहा था।

11th की फेयरवेल में मजे और खुशी भी थी कि सीनियर मोस्ट अब हो गए,
मगर 12th की फेयर मिल में रोना भी आया और समझ भी,
कि आखिर अब तो सचमुच हम बड़े हो गए .....
कि आखिर अब तो सचमुच हम बड़े हो गए......


© Utkarsh Ahuja