/ग़ज़ल : तुझे ख़बर भी नहीं हुई क्या/
12122/12122/12122/12122
मुझे तवज्जो लगे हो देने, मेरी जरूरत कहीं पड़ी क्या
कहीं बिछड़ कर ऐ यार मुझसे,वफ़ा की कीमत पता चली क्या
गमों के बादल बरस रहे हैं, हैं स्याह रातें दिखे न कुछ भी
यही है हाल-ए-दिलअब हमारा,तुम्हारे दिल में सहर हुई क्या
कभी जो रहती थी घर के अंदर, कि उसके होने से गुल थे खिलते
हुआ इक अरसा...
मुझे तवज्जो लगे हो देने, मेरी जरूरत कहीं पड़ी क्या
कहीं बिछड़ कर ऐ यार मुझसे,वफ़ा की कीमत पता चली क्या
गमों के बादल बरस रहे हैं, हैं स्याह रातें दिखे न कुछ भी
यही है हाल-ए-दिलअब हमारा,तुम्हारे दिल में सहर हुई क्या
कभी जो रहती थी घर के अंदर, कि उसके होने से गुल थे खिलते
हुआ इक अरसा...