लालच
लालच
धन का लालच पूत छुड़ावै मन का लालच नारी
लबराय रहे घर छोड़ के बाहर मती गयी है मारी
ईश्वर ने भरपूर दिया नाहक क्यों बेजा डोल रहे
प्रभु ने भेजा लड्डू छेना क्यूँ नाहक शक्कर घोल रहे
मूढ़ का मूड़ मिलै मति ते तो वो भी बुद्धीमान बने
रखे जो अपनों का ख्याल बस एक वही इंसान बने
धन सोना खाना सालों...
धन का लालच पूत छुड़ावै मन का लालच नारी
लबराय रहे घर छोड़ के बाहर मती गयी है मारी
ईश्वर ने भरपूर दिया नाहक क्यों बेजा डोल रहे
प्रभु ने भेजा लड्डू छेना क्यूँ नाहक शक्कर घोल रहे
मूढ़ का मूड़ मिलै मति ते तो वो भी बुद्धीमान बने
रखे जो अपनों का ख्याल बस एक वही इंसान बने
धन सोना खाना सालों...