...

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सुबह स्वागत कविता
मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ
देखने असली चेहरा , बन के वक़्त का पेहरा
जो किनारो पे ना ठेहरा , वो नीर बनके आया हूँ
मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ ।

क्रूरता से बुद्धिमता तक , रेत से विशालता तक
बगीचे के कुसुम से जंगल के बरगद तक
जो पहचान को मांगे अपना हक़ , वो सूक्ष्म बनके आया हूँ
मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ ।।

नकाब है इरादों पर , परछाई है वादों पर
संयम नहीं ज़ज़्बातो पर
जो धैर्य सिखाये , वो शिकारी बनके आया हूँ
मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूँ ।।

देख के इंसानी हालत , मैं सूरज भी हो जाऊँगा अस्त
अंधकारमय हो जायेगी दुनिया , ना बचेगा वक़्त परत
जो अँधेरा दूर करे वो गुरु बनके आया हूँ
मैं आज फिर से क्षितिज पर आया हूं।।
this is my first poem . This beautiful poem is dedicated to my dear teacher
© Sandhya Maurya