...

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फर्क ...
तुम तो ऐसे गयी
जैसे कभी कुछ था ही नहीं
बोलों
मेरे न का इंतज़ार कर रही थी
मेरी शामों से तो वैसे ही तुम उब चुकी थी

तुम तो ऐसे गये
जैसे तुम कभी अपने थे ही नहीं
बोलों
क्या करतीं
रोकतीं...