...

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एक छल ऐसा भी
एक छल ऐसा भी
क्यो
वो किसी और की बेटी थी
देह बचा है की इंसानियत भूल चुके
की मानवता को ताड़ ताड़ होने में खुशी होती है
एक छल ऐसा भी
वो किसी और की बहन थी
क्यो
देह बचा है की इंसानियत भूल चुके
की मानवता को ताड़ ताड़ होने में खुशी होती है
एक छल ऐसा भी
वो किसी और की हर की इज्जत थी
क्यो
देह बचा है की इंसानियत भूल चुके
की मानवता को ताड़ ताड़ होने में खुशी होती है
एक छल ऐसा भी
वो की वो बस बिटिया थी
क्यो
देह बचा है की इंसानियत भूल चुके
की मानवता को ताड़ ताड़ होने में खुशी होती है

© Jagdish Chandra jd